बुद्धिर्बलवती सदा
Class 10


द्वितीय पाठ: 
बुद्धिर्बलवती सदा (सदा बुद्धि ही बलवान होती हैं)

पाठ परिचय
पृस्तुतो अयं पाठ: " शुकसप्तति:" कथागृन्थस्य सम्पादनम् कृत्वा संगृहीतो अस्ति।अतृ पाठान्शे स्वलघुपुतृ।भ्याम् सह काननमार्गेन पितृगृहं पृति गच्छन्त्या: बुद्धिमतीति नाम्या: महिलाया: मतिकौशलं पृदर्शितो वर्तते । या पुरत: समागतं सिहं अपि भीतिमुत्पाद्य तत्: निवारयति । इयं कथा नीतिनिपुणयो: शुकसारिकयो: कथामाध्यमेन सद् वृत्ते: विकासार्थम्  पेरयति ।

हिन्दी अनुवाद। 
यह पाठ शुकसप्तति कथा गृन्थ का सम्पादन करके संगृहीत हैं ।  इस पाठ के अंश में अपने दो छोटे पुत्रों के साथ जंगल के रास्ते से पिता के घर की ओर जाती हुई बुद्धिमति नामक महिला के बुद्धि कौशल को दिखाया गया है।जो सामने आते हुए शेर को भी डराकर वहां से भगा देती है। यह कथा नीतिनिपुण शुक और सारिका की कथा के माध्यम से सद् वृत्ति के विकास के लिए प्रेरित करती है ।

१:- अस्ति देउलाख्यो गा़म:। ततृ राजसिंह: नाम राजपुत्र: वसति स्म । एकदा केनापि  आवश्यक कार्येन तस्य भार्या बुद्धिमति पुत्रद्वयोपेता पितृगृहम् प्रति चलिता।मार्गे गहनकानने सा एकम् व्याघ्रम् ददर्श ।सा व्याघ्रमागच्छन्तम् दृष्ट्वा थाष्ट् र्यात् पुत्रौ चपेटया पृहृत्य जगाद- " कथमेकैकशो व्याघ्रभक्षणाय कलहं कुरुथ: ? अयमेकस्तावद्विभज्य भुज्यताम् । पश्चाद् अन्यो द्वितीय: कश्चिल्लक्ष्यते।"

हिन्दी अनुवाद।
देउला नामक एक गांव था। वहां राजसिंह नामक राजा का पुत्र रहता था। एक बार किसी आवश्यक कार्य से उसकी पत्नी बुद्धिमति अपने दो पुत्रों के साथ पिता के घर की ओर चली। रास्ते में घने जंगल में उसने एक व्याघ्र को देखा । उसने व्याघ्र को आता हुआ देखकर ढिठाई से दोनों पुत्रों को थप्पड़ मारकर कहा - क्यों एक एक व्याघ्र को खाने के लिए झगड़ा कर रहे हो? यह एक ही है अभी इसे बांटकर खा लो। बाद में कोई और दूसरा ढूंढा जायगा । 

२-   इति श्रुत्वा व्याघ्रमारी काचिदियमिति मत्वा व्याघ्रो भयाकुल चित्तो नष्ट: । 
निजबुद्ध्या विमुक्ता सा भयाद् व्याघ्रस्य भामिनी ।
भयाकुलं व्याघ्रं दृष्टवा कश्चित धूर्त: श्रृगाल: हन्नाह -  " भवान् कुत: भयात् पलायित: ?" 

हिन्दी अनुवाद।
यह सुनकर कि यह कोई  बाघ को मारने वाली है एसा मानकर शेर डर से परेशान मन वा‌ला होकर भाग गया। वह रूपवती स्त्री अपनी बुद्धि के द्वारा व्याघ्र के भय से मुक्त हुई। संसार में दूसरे भी बुद्धिमान लोग बड़े से बड़े भय से छुट जाते हैं। डर से परेशान बाघ को देखकर किसी धूर्त सियार ने हंसते हुए कहा -" आप कहां से डर के मारे भाग आये हो।

३- व्याघ्र :-  गच्छ, गच्
छ जम्बुक  ! त्वं अपि किण्चित गूढ़ प्रदेशं । मतों व्याघ्रमारिति या शास्त्रे श्रूयते तयाहं हन्तुमारब्धं परं गृहीतकरजीवितो नष्ट: शीघ्रं तदग्रत: ।
श्रृगाल :- व्याघ्र ! त्वचा महत् कौतुकं आवेदितं यन्मानुषादपि बिभेषि। 
व्याघ्र :- प्रत्यक्षमेव मया सात्मपुतृ। वेकैकशो मामत्तुं कलहायमानौ चपेटया प्रहरन्ती दृष्टा: ।
जम्बुक:- स्वामिन्  ! यत्र । स्ते सा धूर्ता ततृ गम्यताम् । व्याघ्र। तव पुनः तत्र  गम्यताम् सा सम्मुखमपीक्षते यदि, तर्हि त्वचा अहं हन्तव्य: इति  
व्याघ्र :- श्रृगाल । यदि त्वं मात्र मुक्त्वा यासि तथा वेलाप्यवेला स्यात्।

हिन्दी अनुवाद।
बाघ - जाओ, जाओ सियार तुम भी। किसी गुप्त प्रदेश (स्थान) में । क्योंकि बाघ को मारने वाली जो शास्त्रों में सुनी जाती है उसके द्वारा मुझे मारना शुरू किया गया परन्तु हथेली पर जान रखकर जल्दी से उसके सामने से भाग कर आया हूं ।
सियार - अरे बाघ तुमने बड़ी हंसी की बात बताई है कि तुम मनुष्य से भी डरते हो? 
बाघ - मेरे द्वारा सामने ही वह अपने दोनों पुत्रों को मुझे खाने के लिए झगड़ा करते हुए थप्पड़ मारती हुई देखी गई है ।
सियार - स्वामी जहां वह धूर्ता है वहां जाओ । हे बाघ तुम्हारे फिर से वहां जाने पर यदि वह सामने भी देखती है तो तुम मुझे मार सकते हों।
बाघ - सियार यदि तुम मुझे छोड़कर जाओगे तो शर्त भी शर्त नहीं रहेगी।

४--  यदि एवं तर्हि मां निजगले बद्धवा चल सत्वरम् । स व्याघ्र: तथा कृत्वा काननम् ययौ । श्रृगालेन सहितं पुनरायान्तं व्याघ्रं दूरात् दृष्टवा बुद्धिमति चिन्तितवती - जम्बुककृतोत्साहाद्  व्याघ्रात् कथं मुच्यतां ? परं पृत्युत्पन्नमति: सा जम्बुकमाक्षिपन्त्यड़्गुल्या तर्जयन्त्युवाच - 
रे रे धूर्त त्वया दत्तम् मह्यम् व्याघ्रतृयम् पुरा।
विश्वास्याद्यैकमानीय कथं यासि वदाधूना। 
इत्युक्त्वा धाविता तूर्णं व्याघ्रमारी भयंकरा। 
व्याघ्रो अपि सहसा नष्ट: गलबद्धश्रृगालक:  ।
एवं पृकारेण बुद्धिमति व्याघ्रजाद् भयात् पुनरपि मुक्ता अभवत्  ।
अतएव उच्यते - बुद्धिर्बलवती तन्वि सर्वकार्येषु सर्वदा ।

हिन्दी अनुवाद।
यदि ऐसा है तो मुझे अपने गले में बांध कर चलों जल्दी से। वह बाघ वैसा ही करके जंगल में गया। सियार के सहित फिर से आते हुए  बाघ को दूर से देखकर बुद्धिमति ने सोचा - सियार के द्वारा उत्तेजित हुए बाघ से कैसे छुटा जाये ? परन्तु अति शीघ्र सोचने की बुद्धि वाली वह सियार को झिड़कती हुई अंगुली से डांटती हुई बोली - 
अरे धूर्त तुमने पहले ‌मुझे तीन बाघ दिये थे । विश्वास दिलाकर भी आज एक लाकर कैसे जा रहे हो , ये अब बताओ। ऐसा कहकर डरावनी व्याघ्रमारी शीघ्र दौड़ी ।गले में बंधे हुए सियार वाला बाघ भी अचानक भागा।
इस प्रकार से बुद्धिमति बाघ से उत्पन्न डर से फिर से मुक्त हो गई। इसलिए ही कहा जाता है - 
हैं ‌ सुकुमार स्त्री! हमेशा सभी कार्यों में बुद्धि ही बलवान होती है।

पाठ का अभ्यास

प्रश्न  :- १- एकपदेन उत्तरं लिखत |
(एक शब्द में उत्तर लिखिए)

क. बुद्धिमति कुतृ व्याघ्रं ददर्श? 
बुद्धिमति ने कहां बाघ को देखा।
उत्तर:- गहनकानने (घने जंगल में )

ख. भामिनी कया नियुक्ता?  
रूपवती स्त्री किससे मुक्त हुई।
उत्तर :- निजबुद्धया (अपनी बुद्धि के द्वारा)
 
ग. सर्वदा सर्व कार्येषु का बलवती? 
हमेशा सभी कार्यों में कौन बलवान है ।
उत्तर:- बुद्धि: ( बुद्धि)

घ. व्याघ्र: कस्मात्  बिभेति ? 
उत्तर, मानुषाद् (मनुष्य से)

ड़. प्रत्युत्पन्नमति: बुद्धिमति किं आक्षिपन्ती उवाच ?
अति शीघ्र सोचने की बुद्धि वाली बुद्धिमति किसको झिड़कती हुई बोली ? 
उत्तर:- जम्बुकं (सियार को)

 प्रश्न  :- २- अधोलिखितानां प्रश्नानां उत्तराणि संस्कृत भाषया लिखत् 
नीचे लिखें पृश्नो के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिये। 

क. बुद्धिमति केन उपेता पितृगृहं पृति चलिता ।
बुद्धिमति किसके साथ पिता के घर की ओर चलीं।
उत्तर :- बुद्धिमति पुत्रद्वयोपेता पितृगृहं पृति चलिता ।
बुद्धिमति दोनों पुत्रों के साथ घर की ओर चली ।

ख. व्याघ्र: किं विचार्य पलायित: |
बाघ क्या सोचकर भागा। 
उत्तर :- व्याघ्र: व्याघ्रमारी काचित् आरम्भ इति विचार्य पलायित: 
बाघ यह कोई बाघ को मारने वाली है एसा सोचकर भागा।

ग. लोके महतो भयात् क: मुच्यते
संसार में बड़े से बड़े भय से कौन छूट जाता है   ।
उत्तर :- लोके महतो भयात् बुद्धिमान् मुच्यते ।
संसार में बड़े से बड़े भय से बुद्धिमान छुट जाता है ।

घ. जम्बुक: किन वदन् व्याघ्रस्य उपहासं करोति ? 
सियार क्या कहता हुआ बाघ का उपहास करता है ।
उत्तर:- व्याघ्र ।त्वया महत्कौतुम् आवेदितम् यन्मानुषादपि बिभेषि। इति वदन् जम्बुक: व्याघ्रस्य उपहासं करोति ।
हे बाघ तुमने बड़ी हंसी की बात बताई है कि मनुष्य से डरते हो। एसा बोलते हुए सियार बाघ का उपहास करता है ।

ड़. बुद्धिमति श्रृगालं किं उक्तवती।
बुद्धिमति सियार से क्या बोली।
उत्तर :- रे रे धूर्त।त्वया मह्यम् पुरा व्याघ्रतृयं दत्तं । विश्वासस्य अद्य एकं आनीय कथं यासि इति बुद्धिमति श्रृगालं उक्तवती ।
अरे धूर्त। तुमने पहले ‌मुझे तीन बाघ दिये थे। विश्वास दिलाकर आज एक लाकर कैसे जा रहे हो बुद्धिमति सियार से यह बोली। ।

 पृश्न ३- स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरूत

क. ततृ राजसिंहो नाम राजपुत्र: वस्ति स्म ।
वहां राजसिंह नामक राजपुत्र रहता था ।
प्रश्ननिर्माणम् :- ततृ को नाम राजपु त्र: वस्ति स्म ? 
वहां कौन नामक राजपुत्र रहता था ।

ख. बुद्धिमति चपेटया पुत्रो पह्रतवती। 
बुद्धिमति ने थप्पड़ से दोनों पुत्रों को मारा। 
प्रश्ननिर्माणम् :- बुद्धिमति कया पूत्रों पृह्रतवती।
बुद्धिमति ने किससे दोनों पुत्रों को मारा ।

ग. व्याघ्रं दृष्टवा धूर्त: श्रृगाल; अवदत्।
बाघ को देखकर धूर्त सियार बोला ।
प्रश्ननिर्माणं:- कं दृष्टवा धूर्त श्रृगाल: अवदत्। ।
किसको देखकर धूर्त सियार बोला

घ.  त्वं मानुषात् बिभेषि। 
तुम मनुष्य से डरते हो ।
प्रश्ननिर्माणम्:- त्वं कस्मात् बिभेषि ।
तुम किससे डरते हो ।

ड़. पुरा त्वया मह्यम् व्याघ्रतृयम् दत्तम्
पहले तुमने मुझे तीन बाघ दिये थे  ।
प्रश्ननिर्माणम्:- पुरा त्वया कस्मै व्याघ्रतृयम् दत्तम्।
पहले तुमने किसको तीन बाघ दिये थे।

पृश्न ५- सन्धि  सन्धि विच्छेदं वा कुरुत।
 
संधि  संधि विच्छेदं
पितृर्गृहम् पितु:+ गृहम्
एकैक: एक: + एक:
अन्योअपि अन्य: + अपि
इत्युक्तवा इति + उक्त्वा
यतृस्ते यतृ + अस्ते
        

पृश्न - पाठात् चित्वा पर्यायपदं लिखत ।
पाठ से चुनकर पर्याय शब्द लिखिए   
 
वनम् काननम्
श्रृगाल: जम्बुक:
शीघ्रम् सत्वरम्
पत्नी भार्या
गच्छसि यासि

पृश्न    पाठात् चित्वा विपरितार्थकं पंदं लीखत्।
 
प्रथम: द्वितीय:
उक्त्वा श्रुत्वा
अधुना पुरा
अवेला वेला
बुद्धिहीना बुद्धिमति
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