अपादान एवं सम्बन्ध कारक का प्रयोग अपादान कारक का प्रयोग अपादान कारक में ‘से’ इस अर्थ में प्रयोग होता है । जहाँ पर अलग होने की क्रिया पाई जाए, वहाँ उस नामपद को अपादान कारक कहते है । जैसे –
छात्र विद्यालय से आते है - इस वाक्य में छात्रों को विद्यालय से अलग होने की क्रिया है।
इसलिये स्कूल अपादान नामपद है ।अपादान नामपद में पण्चमी विभक्ति का प्रयोग होता है।
जैसे – विद्यालयात् = विद्यालय से।
वृक्ष से पत्ता गिरता है = वृक्षात् पत्रं पतति । यहाँ पर वृक्ष से पत्ते का सम्बन्ध बिलकुल टुट चुका है, अतः वृक्ष में पण्चमी विभक्ति का प्रयोग हुआ ।
जिस नामपद के साथ ‘बिना’ अव्यय का प्रयोग होता है , वहाँ पर भी पण्चमी विभक्ति का प्रयोग होता है । जैसे - ज्ञान के बिना मुक्ति नही होती है = ज्ञानात् बिना मुक्तिः न भवति ।
पंचमी विभक्ति के चिन्ह इस प्रकार होते है –
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
रामात् | रामाभ्याम् | रामेभ्यः |
बालकात् | बालकाभ्याम् | बालकेभ्यः |
छात्रात् | छात्राभ्याम् | छात्रेभ्यः |
नरात् | नराभ्याम् | नरेभ्यः |
संस्कृत वाक्यों में प्रयोग -
वृक्षात् आम्राणि पतन्ति = वृक्ष से आम गिरते है ।
छात्राः विद्यालयात् आगच्छन्ति = छात्र स्कूल से आते है ।
अश्वाः वनात् आगच्छन्ति = घोड़े जंगल से आते है ।
जनाः आपणात् आम्राणि आनयन्ति = लोग बाजार से आम लाते है ।
सोमवारात् अनन्तरं मंगलवारः भवति = सोमवार के बाद मंगलवार होता है ।
कर्णाभ्यात् कुण्डले पततः = कानों कुण्डल गिरते है ।
इस प्रकार अपादान कारक का प्रयोग होता है ।
सम्बन्ध कारक का प्रयोग - एक नामपद का दूसरे नामपद के साथ सम्बन्ध बताने के लिए षष्ठी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है ।
षष्ठी विभक्ति के चिन्ह इस प्रकार है –
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
रामस्य | रामयोः | रामाणाम् |
देवस्य | देवयोः | देवाणाम् |
छात्रस्य | छात्रयोः | छात्राणाम् |
बालकस्य | बालकयोः | बालकानाम् |
जनकस्य | जनकयोः | जनकानाम् |
संस्कृत वाक्यों में प्रयोग- ‘का’ ‘की’ ‘के’
खगाः सरोवरस्य जलं पिबन्ति = पक्षी तालाब का पानी पीते है।
पत्रवाहकः कृष्णस्य पत्रं आनयति = पत्र वाहक कृष्ण के पत्र लाता है।
रामः दशरथस्य चित्रं पश्यति = राम दशरथ के चित्र देखता है।
अध्यापकः छात्राणाम् लेखान् पठति = अध्यापक छात्रों के लेखन को पढ़ते है।