कर्ता एवं कर्म कारक का प्रयोग कर्ता कारक का प्रयोग काम को करने वाला कर्ता होता है। कर्ता में प्रथमा विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।
मै, तुम, वह, राम, श्याम, बालक, बालिका सभी कर्ता है , ये सभी किसी न किसी काम को करते है। इसलिये इनमें प्रथमा विभक्ति का प्रयोग होता है, जिसका अर्थ होता है ‘ने’।
अहम्, त्वम्, सः, रामः, श्यामः, प्रथमा विभक्ति के तीनों रुप इस प्रकार है-
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
रामः | रामौ | रामान् |
बालकः | बालकौ | बालकान् |
उदाहरण के लिये :-
राम पढ़ता है -
रामः पठति | बालक खेलता है -
बालकः क्रिड़ति। राम ने पुष्प देखा -
रामः पुष्पं पश्य। कर्म कारक का प्रयोग जो क्रिया का विषय होता है, उसे कर्म कहते है। जैसे – मै पुस्तक पढ़ता हूँ। इस वाक्य में पढ़ने की क्रिया का विषय पुस्तक है। इसलिये पुस्तक कर्म है ।
वाक्य में नामपद को कर्म बनाने के लिये द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है। द्वितीया विभक्ति के चिन्ह इस प्रकार है –
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
अम् | औ | आन् |
देवम् | देवौ | देवान् |
रामम् | रामौ | रामान् |
छात्रम् | छात्रौ | छात्रान् |
नरम् | नरौ | नरान् |
इस प्रकार द्वितीया विभक्ति के चिन्ह लगाये जाते है और यह ‘को’ इस अर्थ में प्रयुक्त होती है ।
बालकः लेखं लिखति -
बालक लेख को लिखता है। रामः दर्पणं पश्यति -
राम दर्पण को देखता है। सः पाठं पठति -
वह पाठ को पढ़ता है। मोहनः चित्रं पश्यति -
मोहन चित्र को देखता है। कुछ शब्दों के अर्थ -
पश्य | देखना |
अनु+गम् = गच्छ | पीछे जाना |
उप+ गम् = गच्छ | पास जाना |
स्पृश | छूना |
खग | पक्षी |
क्षेत्र | खेत |
कृषक | किसान |
अश्व | घोड़े |
जन | मनुष्य |
गच्छ | जाना |