अ, इ, उ, ओ, की स्थिति के बारे में समझाइये ?
अ - स्वर की स्थिति
अ - स्वर के उच्चारण में जीभ का जो भाग व्यवह्रत होता है, उसके आधार पर उसे अग्र स्वर, पश्च स्वर, या मध्य स्वर नाम देते है ।अतः जिव्हा के स्थान की दृष्टि से ‘अ’ मध्य स्वर है । जिव्हा का विशिष्ट भाग अधिक उठने से ‘अ’ संवृत है, तथा ओठों की स्थिति के अनुसार ‘अ’ उदासीन है, मात्रा की दृष्टि से ‘अ’ ह्रस्व स्वर है, कोमल तालु से उच्चरित होने के कारण ‘अ’ मौखिक स्वर है, ‘अ’ शिथिल स्वर है ।कुल स्वर मूल होते है, अर्थात उनके उच्चारण में जीभ एक स्थान पर रहती है, जैसे ‘अ’ मूल स्वर है, घोष है। (‘अ’ आवृतमुखी , शिथिल, अग्र, विवृत)
इ - स्वर की स्थिति
इ-जीभ के स्थान की दृष्टि से इ अग्र स्वर है। ओष्ठों की स्थिति की दृष्टि से ‘इ’ विस्तृत स्वर है, ‘इ’ ह्रस्व स्वर है, ‘इ’ अनुनासिक स्वर है, ‘इ’ अघोष है, ‘इ’ शिथिल है, तथा मूल स्वर है।
उ - स्वर की स्थिति
उ- जिव्हा के स्थान की दृष्टि से उ पश्च स्वर है, संवृत है, पूर्ण वृत्ताकार है, अघोष है, शिथिल है।
ओ - स्वर की स्थिति
ओ- ओ पश्च स्वर है, अर्द्धसंवृत, मात्रा की दृष्टि से प्लुत है, ‘ओ’ श्रुति कहा जाता है, अवधी तथा भोजपुरी क्षेत्र में औ का (अओ) उच्चारण होता है। अर्थात ओ वृतमुखी दृढ , पश्च, अर्द्धसंवृत है।
इस प्रकार स्वरों की स्थिति को समझना वेदों की ऋचाओं , सूक्तों को पढ्ने में सहायक होता है ।