संस्कृत पुरुष


प्रथमा विभक्ति प्रथम पुरुष के प्रयोग

मैं और तुम को छोड़कर जितनी भी नामपद संज्ञा है , वह सभी प्रथम पुरुष में आती है ।
प्रथमा विभक्ति - सः - वह, तौ - वे दोनों, ते - वे सब। 

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बालक, छात्र, अश्व, मृग, शुक, गज और कोकिल आदि शब्द किसी मनुष्य पशु पक्षी या वस्तु का बोध कराते है। इसलिये इन्हें संज्ञा या नामपद कहते है ।
छात्र लिखता है, हाथी चलता है, घोड़ा दौड़ता है - इन वाक्यों में छात्र, हाथी, घोड़ा कुछ काम करता है। इसलिये इन काम करने वालों को कर्ता कहते है ।
जब हम किसी एक के बारे में बात करते है तो उसे एक वचन कहते है,  जब दो के बारे में बात करते है तो उसे द्विवचन कहते है, जब हम तीन या तीन से अधिक के बारे में बात करते है तो उसे बहुवचन कहते है ।
किसी संज्ञा या नामपद को वाक्य में कर्ता बनाने के लिये उसे प्रथमा विभक्ति के चिन्ह लगाये जाते है ।
प्रथमा विभक्ति के एकवचन द्विवचन तथा बहुवचन के चिन्ह इस प्रकार है –

संज्ञा एकवचन द्विवचन  बहुवचन
बालक बालक:  बालकौ बालकाः
नर नरः नरौ  नराः
छात्र छात्रः छात्रौ छात्राः
खग खगः खगौ खगाः
देव देवः देवौ देवाः


इस प्रकार बालक में प्रथमा विभक्ति का चिन्ह लगाने से अर्थ होगा – बालक ने

बालकौ – दो बालक ने ।

और पठति, लिखति, गच्छति आदि शब्दो को क्रियापद कहते है, क्योंकि इनसे पढ़ने जाने और लिखने आदि काम का ज्ञान होता है।
जिसके विषय में बात की जाती है, उन्हें प्रथम पुरुष या अन्य पुरुष कहते है।

मध्यम पुरुष का प्रयोग

युष्मद्  = तुम   । त्वम् = तुम , युवाम् = तुम दोनों,  युयम् =  तुम सब ।
जिससे बात की जाती है, उसे मध्यम पुरुष कहते है ।
नामपद (संज्ञा) के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्दों को सर्वनाम कहते है ।
मध्यम पुरुष एकवचन का सर्वनाम त्वम् = तु  है । मध्यम पुरुष एकवचन की क्रिया के अन्त में – सि  चिन्ह लगता है ।  गच्छसि
मध्यम पुरुष के द्विवचन का सर्वनाम युवाम्  = तुम दोनों  है ।
मध्यम पुरुष के द्विवचन की क्रिया के अन्त में – थः  चिन्ह लगता है । जैसे- पठथः, गच्छथः।
मध्यम पुरुष के बहुवचन का सर्वनाम  युयम् = तु सब है।
मध्यम पुरुष की क्रिया के अन्त में – थ  चिन्ह लगता है । जैसे-  गच्छथ, पठथ।
 

एकवचन द्विवचन बहुवचन
त्वम् लिखसि युवाम्  लिखथः युयम्  लिखथ
त्वम् पठसि युवाम् पठथः युयम्  पठथ
त्वम् गच्छसि युवाम् गच्छथः युयम् गच्छथ
त्वम् पश्यसि युवाम् पश्यथः युयम् पश्यथ
त्वम् वदसि युवाम्  वदथः युयम् वदथ
त्वम् नमसि युवाम् नमथः युयम्  नमथ 

                                               
इस प्रकार कर्ता यदि मध्यम पुरुष एकवचन का है तो क्रिया में भी मध्यम पुरुष एकवचन ही होगा। और यदि कर्ता द्विवचन है तो क्रिया में भी द्विवचन का प्रयोग ही होगा, कर्ता यदि बहुवचन है तो क्रिया में भी बहुवचन ही होगा। इस बात को बहुत अच्छी तरह समझ ले, कभी भी गलती नही होगी ।

उत्तम पुरुष का प्रयोग

अस्मद्  = हम  ।  अहम्  = मैं,  आवाम् =  हम दोनों, वयम्  = हम सब ।
बात करने वाला स्वयं उत्तम पुरुष होता है ।
उत्तम पुरुष में एकवचन का सर्वनाम है  - अहम् = मैं।
उत्तम पुरुष में एकवचन की क्रिया में लगने वाला चिन्ह होता है – मि ।
जैसे वदामि, गच्छामि, लिखामि, पश्यामि
उत्तम पुरुष के द्विवचन का सर्वनाम है – आवाम् = हम दोनों।
उत्तम पुरुष में द्विवचन की क्रिया में लगने वाला चिन्ह होता है – वः
जैसे -  गच्छावः, लिखावः वदावः पश्यावः 
उत्तम पुरुष के बहुवचन का सर्वनाम है – वयम् = हम सब।
उत्तम पुरुष के बहुवचन की क्रिया मे लगने वाला चिन्ह है – मः।

जैसे -  गच्छामः, लिखामः, पश्यामः, वदामः।

एकवचन द्विवचन बहुवचन
अहम्  लिखामि आवाम् लिखावः वयम् लिखामः
अहम्  पश्यामि आवाम् पश्यावः वयम्  पश्यामः
अहम्  गच्छामि आवाम्  गच्छावः वयम् गच्छामः
अहम् क्रिड़ामि आवाम् क्रिड़ावः वयम् क्रिड़ावः


इस प्रकार उत्तम पुरुष में भी यदि कर्ता एकवचन है तो क्रिया में भी उत्तम पुरुष एकवचन ही होगा, यदि कर्ता उत्तम पुरुष द्विवचन है तो क्रिया में भी उत्तम पुरुष द्विवचन ही होगा और यदि कर्ता बहुवचन है तो क्रिया में भी बहुवचन ही होगा ।
इस प्रकार तीनों वचन, और तीनों पुरुष में कर्ता के साथ क्रिया का प्रयोग किस प्रकार होता है, यह हमने समझा ।अब छोटे छोटे वाक्यों का हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद हम कर सकते है ।
मै जाता हूँ  - अहम्  गच्छामि, वह जाता है  - सः गच्छति । हम सब जाते है – वयम् गच्छथ 
 

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