करण एवं सम्प्रदान कारक का प्रयोग
करण कारक का प्रयोग करण कारक में हमेशा तृतीया विभक्ति लगाई जाती है।
जिस नामपद के साथ ‘सह’ अव्यय का प्रयोग होता है, उस नामपद में तृतीया विभक्ति लगाई जाती है।
करण कारक के चिन्ह इस प्रकार है –
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
देवेन | देवाभ्याम् | देवैः |
रामेण | रामाभ्याम् | रामैः |
छात्रेण | छात्राभ्याम् | छात्रैः |
शिष्येण | शिष्याभ्याम् | शिष्यैः |
इसी प्रकार अन्य शब्दों में - हस्तेन, पादेन, पादाभ्याम्, कन्दुकेन, पाणिना, जलेन, ध्यायेन, आदि।
संस्कृत वाक्यों में प्रयोग -
छात्रः कन्दुकेन क्रिड़ति - छात्र गेंद से खेलता है ।
नराः पादाभ्याम् चलन्ति - मनुष्य पैरों से चलते है ।
वयम् नेत्राभ्याम् पश्यामः - हम सब नेत्रों से देखते है।
सः कर्णाभ्याम् आकर्णयति - वह कानों से सुनता है ।
कृषकः जलेन क्षेत्रम् सिण्चति – किसान जल से खेत को सिंचता है।
धनेन सुखम् भवति - धन से सुख मिलता है ।
मोहन पादाभ्याम् चलन्ति - मोहन पैरों से चलता है।
सम्प्रदान कारक का प्रयोग - जिसके लिये कोई क्रिया की जाती है , उसे सम्प्रदान कहते है ।
सम्प्रदान नामपद में चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है।
दान देने और नमस्कार के अर्थ में भी चतुर्थी विभक्ति का ही प्रयोग होता है।
जैसे - पुस्तकानि ज्ञानाय भवन्ति ।
धनिकः निर्धनेभ्यः वस्त्रानि यच्छति ।
नमः शिवाय।
चतुर्थी विभक्ति के चिन्ह इस प्रकार होते है -
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
देवाय | देवाभ्याम् | देवेभ्यः |
छात्राय | छात्राभ्याम् | छात्रेभ्यः |
रामाय | रामाभ्याम् | रामेभ्यः |
बालकाय | बालकाभ्याम् | बालकेभ्यः |
खगाय | खगाभ्याम् | खगेभ्यः |
संस्कृत वाक्यों में प्रयोग -
अहम् पठनाय विद्यालयं गच्छामि - मै पढ़ने के लिये विद्यालय जाता हूँ ।
तौ युद्धाय रणक्षेत्रं गच्छतः - वे दोनों युद्ध के लिये लड़ाई के मैदान को जाते है ।
छात्राः लेखनाय सचिका ; आनयन्ति - छात्र लिखने के लिये कापियाँ लाते है ।
धनिकाः दीनेभ्यः धनं यच्छति – धनिक निर्धनों को धन देते है ।
जनकः पुत्राय पुस्तकानि आनयति - पिता पुत्रों के लिये पुस्तकें लाते है।
इस प्रकार सम्प्रदान कारक का प्रयोग किया जाता है ।